एक ऐसा मंदिर जहां प्रकट हुए थे भोले, भक्‍त शिवलिंग के साथ पीपल की भी करते हैं पूजा

एक ऐसा मंदिर जहां प्रकट हुए थे भोले, भक्‍त शिवलिंग के साथ पीपल की भी करते हैं पूजा


शिवरात्रि (Shivratri) में भक्त भोले शंकर की पूजा करने के लिए सुबह से ही लाइनों में लगकर उन्हें जलाभिषेक करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे शिवालय होते हैं जहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ अधिक होती है. गोरखपुर स्थित झारखंडी महादेव मंदिर (Jharkhandi Mahadev Temple) ऐसा ही स्वमंभू शिवलिंग है जहां पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है. स्वंमभू उस शिवलिंग को कहा जाता है जो अपने आप प्रगट हुआ हो. जबकि इस मंदिर में मुस्लिम भी पूजा पाठ के लिए आते हैं.

झारखंडी महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी ने कही ये बात
झारखंडी महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी शंभु गिरी का कहना है कि पहले यहां पर चारों तरफ जंगल हुआ करता था. यह निर्जन क्षेत्र था, लकड़हारे यहां से लकड़ी काटकर ले जाते थे और अपना जीवकोपार्जन करते थे. एक दिन एक लकड़हारा यहां पर पेड़ काट रहा था कि तभी उसी कुल्हाड़ी पर एक पत्थर टकराया जिससे खून की धारा निकलने लगी, जिसके बाद वो डर गया. जबकि वो लकड़हारा जितनी बार उस शिवलिंग को ऊपर लाने की कोशिश करता वो उतना ही नीचे धंसता चला जा रहा था. लकड़हारे ने भाग कर यह घटना अन्य लोगों को बताई. इसी बीच वहां के जमींदार को रात में भगवान भोले का एक सपना आया कि झारखंडी में भोले प्रकट हुए हैं. इसके बाद जमींदार और स्थानीय लोगों ने वहां पहुंचकर शिवलिंग को जमीन से ऊपर करने की कोशिश करने लगे और वह इसमें सफल नहीं हुए तब शिवलिंग पर दूध का अभिषेक किया जाने लगा और वहां पर पूजा पाठ शुरू हुआ. इसके बाद शिवलिंग ऊपर आया और तभी से यहां पर बड़ी संख्या में भक्त पूजा पाठ कर रहे हैं. शिवलिंग पर आज भी कुल्हाड़ी के निशान देखने को मिलते हैं.

शिवलिंग के बगल में पीपल का पेड़


शिवलिंग के बगल में ही एक विशालकाय पीपल का पेड़ है. ये पेड़ पांच पौधों को मिलाकर एक बना है. पेड़ की उम्र लोग अलग-अलग बताते हैं. कोई कहता है कि ये पेड़ डेढ़ सौ साल पुराना है तो कोई कहता है कि पेड़ दो सौ साल से अधिक पुराना है. भक्त भोले के साथ-साथ उसकी भी पूजा करते हैं. जबकि पीपल की जड़ के पास एक पंच नाग की आकृति बन गई है. ये आकृति लोगों के कौतूहल का विषय है. जबकि मंदिर के मुख्‍य पुजारी शंभु गिरी कहते हैं कि करीब 50 साल पहले ये आकृति वो देख रहे हैं और तभी से भक्त इसकी पूजा कर रहे हैं.

खुले आसमान में शिवलिंग
झारखंडी महादेव मंदिर में जहां पर भगवान भोले का शिवलिंग है वो खुले आसमान में है. कई बार शिवलिंग के ऊपर छत डालने की कोशिश हुई, लेकिन वो पूरी नहीं हुई. उसके बाद शिवलिंग को खुले में ही छोड़ दिया गया है और उसके ऊपर पीपल के पेड़ की छांव ही रहती है. वहीं मंदिर में ही पूजा कर रहे ज्योतिष तिवारी का कहना है कि शास्त्रों में लिखा है कि अगर हम किसी मंत्र का जप करते हैं तो उसका लाभ मिलता है. अगर उसी मंत्र का जप नदी के किनारे करते हैं तो दस गुना लाभ मिलता है. यही काम पीपल के पेड़ के नीचे करते हैं तो 100 गुना फल मिलता है. अगर हम शिवालयों में पूजा करते हैं तो अन्नत फल मिलता है. झारखंडी महादेव स्वंमभू शिव है, इसलिए यहां पूजा करने पर श्रद्धालुओं को विशेष लाभ होता है.